नए महाविद्यालयों के एफलिएशन के मामले में शुचिता के साथ हुई है जाँच :कॉलेज इंस्पेक्टर
छपरा : इन दिनों जयप्रकाश विश्वविद्यालय काफी सुर्खियों मैं है क्योंकि समाचार पत्रों में नए महाविद्यालयों के एफलिएशन के लिए जांच में गड़बड़ी एवं वित्तीय घोटाले का मामला बार-बार उठाया जा रहा है। इस बाबत जेपीयू के कुलपति के द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बताया गया कि नए कॉलेज के एफलिएशन के लिए जयप्रकाश विश्वविद्यालय में कुल 74 महाविद्यालयों के लिए आवेदन प्राप्त हुए थे। विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 के आलोक में 74 आवेदनों 33 आवेदनों के भौतिक सत्यापन हेतु विचार योग्य पाया गया । इन 33 कालेजों का भौतिक निरीक्षण विश्वविद्यालय द्वारा गठित अलग-अलग तीन सदस्यीय कमेटी द्वारा किया गया। कालेज द्वारा उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों तथा भौतिक सत्यापन के क्रम में पाए गए तथ्यों के आधार पर भौतिक सत्यापन किए गए।कुल कॉलेजों में से 8 कालेजों के प्रस्ताव के संबंध में विचारार्थ बिहार सरकार भेजे जाने की संस्तुति की गई । जिसमें छपरा जिला के लिए गठित तीन सदस्यीय समिति ने 4 कॉलेजो के प्रस्ताव तथा सिवान एवं गोपालगंज जिले के लिए दो-दो कॉलेजो के प्रस्ताव को बिहार सरकार को भेजने की अनुशंसा की थी। इन महाविद्यालयों के जाँचोपरांत प्रस्तावों को विश्वविद्यालय के न्यू टीचिंग एंड एफलिएशन कमेटी की बैठक में विचारार्थ रखा गया , वहां से प्रस्ताव पारित हुआ इसके उपरांत न्यू टीचिंग एंड एफलिएशन कमिटी से पारित इस प्रस्ताव को विश्वविद्यालय के एकेडमिक काउंसिल की बैठक में विचारार्थ रखा गया , काउंसिल द्वारा भी इस प्रस्ताव को पारित किया गया। इसके बाद प्रस्ताव को विश्वविद्यालय के सिंडिकेट के समक्ष रखा गया सिंडिकेट द्वारा पारित होने के बाद सर्वोच्च विधायी कमेटी सीनेट के समक्ष उपस्थित किया गया तथा सीनेट द्वारा भी प्रस्ताव को अनुमोदित कर दिया गया । एफलिएशन हेतु 74 कॉलेजो द्वारा आवेदन समर्पित किए गए थे उनमें संलग्न किए गए भूमि भवन प्रयोगशाला पुस्तकालय फर्नीचर आदि के कागजातों की जांच कमेटी द्वारा यथासंभव सूक्ष्म एवं सघन रूप से की गई। हालांकि कॉलेजो के द्वारा समर्पित किए दस्तावेजों के साथ शपथ पत्र भी दिया गया था फिर भी कमियां पाए जाने के कारण कमेटी द्वारा 66 कालेजों के संबंध के प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया गया । सिर्फ आठ के प्रस्ताव को ही संबंध के विचार आप भेजे जाने जो पाया गया इधर कुछ समाचार पत्रों में यह भी उजागर हुआ कि स्कूल के जमीन को महाविद्यालय का जमीन दर्शाया गया
*हमलोग कोई भूमि विशेषज्ञ नही : सदस्य*
इस बाबत जांच कमेटी में शामिल इंस्पेक्टर डॉ आरपी श्रीवास्तव एवं डॉ अमरेंद्र झा ने बताया कि वस्तु स्थिति यह है कि कमेटी के सदस्य न तो भूमि संबंधी मामलों के विशेष जानकार हैं और नहीं भूमि के दस्तावेजों के जानकार हैं फिर भी कमेटी द्वारा अपनी पूरी क्षमता के साथ इस कार्य को संपादित करने की कोशिश की गई। कमेटी द्वारा भूमि के संबंध में कॉलेजो द्वारा संलग्न किए गए संबंधित अंचलाधिकारी , सरकारी अमीन आदि के सर्टिफिकेट को भी भूमि की उपलब्धता का आधार माना गया है । इसके बावजूद इस प्रस्ताव में अगर बिहार सरकार या राज्य भवन द्वारा कोई कमी पाई जाती है तो इसकी पुनः जांच कराई जा सकती है।
वही विश्वविद्यालय के कुलपति ने यह बात बताई कि जो लगभग 70 करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया जा रहा है । उसमें किसी भी प्रकार का घोटाला नहीं है। मुख्य रूप से शिक्षकों , पदाधिकारियों के वेतन एवं रिटायरमेंट के रुपए इसमें दिए गए हैं ।राजभवन को कुल 51 पेज में खर्चे का हिसाब प्रस्तुत कर दिया गया है । राज भवन के द्वारा यह नहीं कहा गया है कि रुपए का घोटाला हुआ है राजभवन के पत्र में मात्र इस बात का जिक्र है कि हम दिए गए खर्चे के हिसाब से संतुष्ट नहीं है। इसके लिए राजभवन के द्वारा जांच के लिए कमेटी का गठन कर दिया गया है । जांच कमेटी के फैसला आते ही पता चल जाएगा कि क्या वास्तव में घोटाला हुआ है कि खर्च सही तरीके से हुए हैं।
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