सोनपुर--- भारतीय नारी के सम्मान की रक्षा के लिए अधम समझे जाने वाले गिद्ध राज जटायु ने अपने प्राण उत्सर्ग कर दिए। तब तक उनके प्राण अटके रहे जब तक श्रीराम नही मिले और सीता अपहरण की सूचना उन्होंने उन्हें नही दे दी।"धन्य जटायु सम कोई नाही"।भगवान श्रीराम ने जटायु की नारी के प्रति सम्मान के इसी भाव और उनकी भक्ति को देखते हुए सहज ही अपना चतुर्भुज स्वरूप प्रदान कर दिया। श्रीअयोध्याधामके भरतचरितके मर्मज्ञ स्वामी मिथिलेशाचार्य जी महाराज ने गंगा-गंडक संगम तीर्थ सबलपुर में आयोजित नौ दिवसीय विराट महाविष्णु यज्ञ के सातवें दिन प्रवचन में उपरोक्त बातें कहीं।यह यज्ञ श्री वृन्दावन धाम के श्री रंगरंगनाथपीठ के रामानुज सम्प्रदायाचार्य महामंडलेश्वर जगद्गुरु महन्त स्वामी श्रीकृष्ण प्रपन्नाचार्य जी महाराज के दिव्य मंगलानुशासन में संपन्न हो रहा है।स्वामी मिथिलेशाचार्य जी ने सीता जी के अपहरण के प्रसंग में उदाहरण देते हुए कहा कि ऊँचे कुल में जन्म लेने के बाद भी रावण ने सीता जी के अपहरण का कुकृत्य किया।उसके तेज का हरण हुआ।चोरी से या अपना भेद छुपाकर गलत कार्य करनेवाले कभी सुखी नही होते।पाप के भागी बनते हैं।रावण ने भी गलत कर्म किया।सीताजी के विलाप को सुनकर 60हजार वर्ष आयु वाले बूढा जटायु भी युवा रावण से भिड़ गया।रावण को बहुत उपदेश दिए पर उस पर कोई प्रभाव नही पड़ा। तब सीता जी को उसके चंगुल से बचाने के लिए जटायु ने अपने चोंच के निरंतर प्रहार से रावण आहत कर दिया।रथ से गिरा दिया।रावण चैतन्यशून्य हो गया।तब जटायु ने सीता जी को एक वृक्ष की छाया में बैठा दिया।चेतना लौटने पर रावण ने भगवान शिव द्वारा प्रदत्त तलवार से जटायु के पंख काट डाले और रथ पर बैठा सीताजी को ले भागा।जटायु घायल होकर गिर पड़ा।उसे अपने मित्र राजा दशरथ की पुत्रवधू सीताजी को रावण के चंगुल से बचा नही पाने का अतिशय दुख था।जब श्रीराम पर्णकुटी में सीता जी को नही देखा तो भाई लक्ष्मण सहित खोजने निकले।इसी क्रम में श्रीराम जी ने 'आगे परा गीध पति देखा।सुमिरन राम चरन जिन्ह रेखा'।जटायु का सिर अपनी गोद में लेकर पूछा आपकी यह गति किसने की?जटायु ने लंकापति रावण के बारे में बताया कि मिथिलेश नंदिनी को हरण कर वह दक्षिण दिशा की ओर ले गया है।और उन्हीं को बचाने के समय रावण ने उसकी यह दुर्दशा की है।स्वामी जी ने कहा देखिए भारत के एक पक्षी को भी ज्योतिष विद्या का ज्ञान था। तभी तो दिशा का भी ज्ञान बता दिया जिस रास्ते से रावण सीता जी को ले भागा था।भगवान ने अपने पिता समतुल्य जटायु को जीवित रहने की बात कही पर जटायु ने भगवान की गोद में ही अपनी मुक्ति को श्रेयष्कर माना और भगवान ने उनसे वचन लिया कि स्वर्ग में उनके पिता राजा दशरथ को सीता अपहरण की बात नहीं बताएंगे।क्योंकि उन्हें बहुत दुख होगा।मैं वचन देता हूँ कि शीघ्र ही रावण को परिवार सहित गाजर-मूली की तरह काटकर सीता जी को सकुशल ले आऊंगा।जटायु ने भगवान की गोद में ही अपने नश्वर गीध शरीर त्याग दिया और भगवान का चतुर्भुज स्वरुप पाया।भगवान कहते हैं कि जिस शरीर से नारी का सम्मान होता है वह मुझे बहुत प्रिय है।जटायु के मृत शरीर का भगवान श्रीराम ने विधि सम्मत क्रिया-कर्म किया।नारी के सम्मान का उसे अमृत फल मिला।भगवान की गोद में उसे मुक्ति मिली।भगवान का चतुर्भुज स्वरुप मिला।स्वामी जी कहते हैं कि आजतक परमात्मा की गोद में किसकी मृत्यु हुई है?भरत जी ने तो सहज भाव से केवट को गले लगा लिया था।दशरथ जी पूर्व जन्म में घोर तपस्या किए तब जाकर प्रभु ने उनके पुत्र के रुप में रामावतार लिया।तब भी वह सौभाग्य महाराज दशरथ को प्राप्त नही हुआ। पर मरते समय उन्हें उसका सौभाग्य भी नही मिला।मरते समय श्रीराम उनके पास नहीं थे।राम नाम रटते-रटते उन्होंने परमगति पाई।भगवान ने जिसे स्वीकार कर लिया वह भगवान का स्वरुप हो गया।श्वपच भी अगर भगवान की पूजा, तुलसी की सेवा, नारी सम्मान करें तो वह स्तुत्य है और अगर ब्राह्मण भी मछली, मुर्गी, मांस खाए मदिरा पिए और परस्त्री गमन करे तो ब्राह्मण कुल में जन्म लेना उसका बेकार है।