
सोनपुर । बिहार के प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर स्थित श्री गजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम् नौलखा मंदिर प्रांगण से जय श्रीमन्नारायन के घोष से भव्य कलश यात्रा निकाली गई। श्रद्धालु भक्तों ने अपने शिर पर कलश लेकर सोनपुर नगर की परिक्रमा करते हुए श्री गजेन्द्र मोक्ष घाट पहुंच कर श्री स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी के साथ श्री नारायणी माता की पूजा एवं जल मातृका,थल मातृका, स्थान मातृका पूजन करते हुए जलाहरण कर श्री गजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम् में परिक्रमा किया। सैकड़ों श्रद्धालुओं सहित दिलीप झा, फूल झा, रतन कुमार, श्रीमन्नारायण ओझा, समाजसेवी लाल बाबू पटेल, भोला सिंह आदि ने कथा श्रवण व संचालन में सहयोग कर हर्षित हुए ।
पुरूषोत्तम मास के शुभ अवसर पर जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी महाराज जी ने अपने मुखारविंद से श्रीमद्भागवत के प्रथम दिन मंगलवार को कथा का रसपान कराया। कथा प्रारम्भ में श्री स्वामी जी ने पुरूषोत्तम मास के सम्बन्ध में विस्तार से बताया। श्री स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी ने कहा सनातन धर्म में अधिक मास से जुड़ी कई तरह के पौराणिक कथा बताई गई हैं, उन्हीं पौराणिक कथाओं में से एक है । नरसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप के वध की कथा। एक बार हिरण्यकश्यप वन में ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या कर रहा था। उसके तप से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा प्रकट हुए। तब हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा, लेकिन अमरता का वरदान देना ब्रह्मा जी के लिए निषिद्ध था। तब ब्रह्मा जी ने उसे कोई और वरदान मांगने को कहा। उनके इस वचन को सुनकर हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से एक ऐसा वरदान मांगा, जिससे संसार का कोई भी नर-नारी, पशु-पक्षी, असुर और न ही कोई देवता मार सके। इसके साथ ही साल के 12 महीनों में मेरी मृत्यु न हो ।ब्रह्मा जी से वरदान पाते ही वह स्वयं को अमर मानने लगा और सारी सृष्टि पर अत्याचार करने लगा। उसके बढ़ते अत्याचार को खत्म करने के लिए स्वयं भगवान विष्णु ने अधिक मास में नरसिंह अवतार में प्रकट हुए और शाम के समय देहरी के बीच उसका सीना चीरकर मृत्यु के घाट उतार दिया। तब से अधिक मास का विशेष महत्व माना गया है। श्री स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी ने आगे कहा कि इस पुरूषोत्तम मास में अपने पितरों को प्रसन्न करने हेतु पूजा पाठ आदि करने चाहिए।
श्री स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी ने कहा कि भागवत के चार अक्षर इसका तात्पर्य यह है कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे उसे हम भागवत कहते है।साथ ही श्रीमद् भागवत तो दिव्य कल्पतरु है यह अर्थ, धर्म, काम के साथ साथ भक्ति और मुक्ति प्रदान करके जीव को परम पद प्राप्त कराता है। उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत केवल पुस्तक नहीं साक्षात श्रीकृष्ण स्वरुप है। इसके एक एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हुये है। उन्होंने कहा कि कथा सुनना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्मो से बढ़कर है। उन्होंने कहा कि एक बार ब्रह्मा जी ने समस्त यज्ञ, व्रत,तप को तराजू के एक पलड़े पर और दूसरे पलड़े पर श्रीमद्भागवत पुराण को रखा तो श्रीमद्भागवत जी का पलड़ा झूका रहा।
आगे श्री स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी ने भक्ति देवी और नारद भगवान के मिलन और भक्ति देवी के दोनों पुत्रों ज्ञान और वैराग्य की रोचक कथा सुनाते हैं। श्री स्वामी जी ने कहा कलयुग में हरिनाम संकीर्तन से सबकुछ मिल जाता है। श्री स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी महाराज ने आज की कथा में गोकर्ण, धुंधकारी और राजा परीक्षित के जन्म को विस्तार से बताया। श्री स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा के सम्बन्ध में यह भी कहा कि सर्व प्रथम राजा परीक्षित जी शुक्रताल में श्री शुकदेव जी महाराज से यह कथा सुने।
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